चक्र - 5

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अगले दिन मैं प्रातःकाल ही शिविर में पहुंच गया। लता मुझे पाकर ऐसे खिल गई जैसे, सूर्य-रश्मि को पाकर कमल-पुष्प। थोड़ी देर बाद वह अपने तंबू से अपना सफेद झोला उठा लाई। जिसमें से उसने कम्पित हाथों से मुझे एक सफेद लिफाफा निकाल कर दे दिया। आशंकित मन मैं उसे, एक कोने में जाकर पढ़ने लगाः“फिर आई जुदाई की रात...मैं तुमसे जुदा होना नही चाहती! तुमको पा न सकी क्योंकि/यह मेरी खुदाई नही चाहती! मिलकर बिछुड़ना ही था इक दिन/तो यह मुलाकात क्यों हुई? उल्फत में ठोकरें थीं, दर्द