कलयुग और परमब्रह्म

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अब अशुद्धि के लिए मैं शुद्ध होना चाहता हूँ, अब कुबुद्धी को लिए मैं बुद्ध होना चाहता हूँ. चाहता हूँ इस जगत में शांति चारों ओर हो, इस जगत के प्रेम पर मैं क्रुद्ध होना चाहता हूँ. चाहता हूँ तोड़ देना सत्य की सारी दीवारें, चाहता हूँ मोड़ देना शांति की सारी गुहारें. चाहता हूँ इस धरा पर द्वेष फूले और फले, चाहता हूँ इस जगत के हर हृदय में छल पले. मैं नहीं रावण की तुम आओ और मुझको मार दो, मैं नहीं वह कंस जिसकी बाँह तुम उखाड़ दो. मैं जगत का हूँ अधिष्ठाता मुझे पहचान लो, हर