अब क्या कहूँ

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आजकल मैं अत्यधिक चिंतित रहती हूँ।अपनी इस परेशानी को किसी से बांट भी तो नहीं सकती, बस ईश्वर से प्रार्थना करती रहती हूँ कि जो हमारे लिए उचित हो,वह निर्धारित करना,सद्बुद्धि देना,क्योंकि अक्सर हमारे हाथ में कुछ होता नहीं है,मुझे ऐसा प्रतीत होने लगा है, बस हम मौन सबकुछ विवश सा देखते रहते हैं। पहले सोचती थी कि बेटियों की माँओं को ढेरों चिंताओं का सामना करना पड़ता है, यथा..बाहर भेजने में, जमाने की उंगलियों का, संस्कारों का,गृहस्थी के कार्यों की कुशलता का,कुछ ऊंच-नीच का,दान-दहेज,विवाहोपरांत सामंजस्य का….औऱ भी न जाने क्या-क्या,जिनसे जूझते अपनी माँ एवं अन्य परिचिता महिलाओं को देखा