जमनादास बड़ी देर तक आँखें बंद किये उस बेंच की पुश्त से पीठ टिकाए बैठा रहा। बाहर से देख कर कोई उसके अंतर के हलचल को महसूस नहीं कर सकता था। साधना की परछाई ठहाके लगाते हुए अचानक गायब हो गई थी और छोड़ गई थी अपने पीछे कई सवाल। ये वो सवाल थे जो उसके मन में असीम वेदना उत्पन्न कर रहे थे लेकिन उसके पास इन सवालों का कोई जवाब नहीं था। उस दिन मास्टर साहब अपना क्रोध उसपर प्रकट करने के बाद अचानक उठ कर निकल गए थे। उनके काँपते कदमों को उसने महसूस भी किया था