"सिस्सो मैं ने तुम्हारे लिए एक शायरी लिखी है।" ज़ाहिद ने शरारत से मुस्कुराते हुए कहा। "सुनाओ।" सोफ़िया ने जल्दी से कहा। उसकी बात सुनकर माहेरा उसे घूरने लगी क्योंकि वोह जानती थी उस शायरी में इसकी बेइज़्ज़ती के इलावा कुछ भी नही होगा। क्योंकि पिछले दो साल से ज़ाहिद ऐसा ही कर रहा था और अब उसे उसकी शायरी की आदत हो गयी थी। "सबसे अलग सबसे प्यारे हो आप।" "वाह ज़ाहिद इस बात तुम में इम्प्रोवमेंट हुई है।" सोफीया ने मुस्कुराते हुए कहा। "यार सोफी आगे तो सुनो।" उसके बीच मे टोकने पर ज़ाहिद मुंह फुला कर बोला।