नकली नारंगी

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’’हलो’’, साड़ियों के एक मेले के दौरान अपने कंधे पर एक हाथ के दबाव के साथ यह अभिवादन सुना तो मैंने पीछे मुड़कर देखा। ’’नहीं पहचाना मुझे ?’’ अजनबी की उतावली बढ़ ली। ’’पहचानूँगी कैसे नहीं ?’’ उसे पहचानने में असमर्थ रह जाने के कारण मुझे गप हाँकनी पड़ी, ’’पहचान रही हूँ....। ’’मेरा नाम बताओ’’, अजनबी ठठायी। मसकारा, लिप-ग्लौस, नेल-पालिश, पाउठर और रूज के प्रवण, सुव्यवस्थित प्रयोग से सजा-संवरा यह चेहरा जितना अपना लग रहा था, उतना ही बेगाना भी। उसके बालों की ’अल्ट्रा-माडर्न’ काट और विदेशी पोशाक पारस्परिक परिपाटी के विपरीत रहीं। पाँच इंच ऊँची अपन सैंडिल की पिछली