इश्क़ ए बिस्मिल - 2

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बहुत मसरूफ़ हूं मैं,जाने किस इल्हाम में हूं?मुझे ख़बर ही नहीं,के मैं किस मक़ाम पे हूं,वह नाश्ता कर रहा था जब अज़ीन कालेज के लिए तैयार हो कर नाश्ता करने डाइनिंग रूम में दाखिल हो रही थी, मगर आधी दूरी पर ही उसके कदम ठहर गए थे। हदीद की पीठ उसकी तरफ़ थी और वह अपने आस पास से बेगाना उसकी पीठ को एक टुक तके जा रही थी, उसे होश तब आया जब आसिफ़ा बेगम की नागवार आवाज़ उसकी कानों तक पहुंची “तुम वहां खड़ी क्या तक रही हो? अगर नाश्ता नहीं करना है तो कालेज जाओ”मां की आवाज़