नक्षत्र कैलाश के - 6

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                                                                                                    6 वहाँ पहूँचते ही हमें मिनार जाने की उत्सूकता थी। लेकिन हर काम अपने समय के अनुसार ही होता हैं। अपनी अपनी चाय खत्म करके सब मिनार चढने लगे। वहाँ से बहुत सारी पर्वत चोटीयाँ नजर आ रही थी। पुरीजी इसकी ज़ानकारी देने लगे। सामने दिख रहा हैं वह नंदादेवी