एक हज्जाम था ।काम का न काज का दुश्मन अनाज काउस पर उधार था पैसा बजाज काहजामत का हुनर न न हुनर मसाज काकाम का न काज का दुश्मन अनाज काउसकी बूढ़ी मां थी एक जो दिन रात कलपती रहती थीडाँटती फटकारती फिर भी इस निकम्मे के वास्ते दिन भर खटती रहती थी ।जूं तक न रेंगती थी कभी उसके कान पे आफत न आने देता था कभी अपनी जान पेएक दिन उसकी बूढ़ी माँ उससे बहुत तंग होकर हाथ में झाड़ू लिए तेज आवाज में कहा निकम्मे, निखट्टू निकल यहां से ... https://bookboard.in