सिर माथे

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’’कोई है?’’ रोज की तरह घर में दाखिल होते ही मैं टोह लेता हूँ। ’’हुजूर!’’ पहला फॉलोअर मेरे सोफे की तीनों गद्दियों को मेरे बैठने वाले कोने में सहलाता है। ’’हुजूर!’’ दूसरा दोपहर की अखबारों को उस सोफे की बगल वाली तिपाई पर ला टिकाता है। ’’हुजूर!’’ तीसरा मेरे सोफे पर बैठते ही मेरे जूतों के फीते आ खोलता है। ’’हुजूर!’’ चौथा अपने हाथ में पकड़ी ट्रे का पानी का गिलास मेरी तरफ बढ़ाता है। ’’मेम साहब कहाँ हैं?’’ शाम की कवायद की एक अहम कड़ी गायब है। मेरे दफ्तर से लौटते ही मेरी सरकारी रिवॉल्वर को मेरी आलमारी के