ममता की परीक्षा - 57

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सेठ शोभालाल एक बार फिर डॉक्टर के कक्ष में चले गए थे उनसे अपनी योजना के मुताबिक बात करने और अस्पताल की लॉबी में बृन्दादेवी के साथ जमनादास अकेले ही बैठा हुआ था। जमनादास का युवा मन उन दोनों की बातें सुनकर खुद को धिक्कार रहा था, 'कैसे माँ बाप हैं ये ? मैंने तो एक माँ की ममता के भुलावे में आकर अपने सबसे जिगरी दोस्त से गद्दारी कर ली है। कितना बेवकूफ हूँ मैं। क्या यही है इनकी ममता का राज ? गोपाल से इनकी ममता क्या सिर्फ इसलिए है कि वह इनके लिये करोड़ों की लॉटरी के