प्रकरण 13 और केतकी के भविष्य, सुरक्षा, सुख और शिक्षा का विचार करते हुए यशोदा ने अपने मन पर पत्थर रखकर निर्णय ले लिया। कानजी चाचा की नस ने ऐसा कमाल दिखाया कि तीसरे ही दिन जयसुख स्वयं यशोदा को उसकी ससुराल छोड़ आया। प्रभुदास और जयसुख को सब समझ में आता था, लेकिन एक मां के मन की बात केवल लखीमां और यशोदा ही समझ सकती थीं। यशोदा के मन में केतकी की पढ़ाई और पालन-पोषण को लेकर नई आशा जाग गई। इसलिए एक ओर तो उसे आनंद हो रहा था, लेकिन वहीं केतकी की विरह की कल्पना से