आम औरत की दैहिक या मानसिक यातना के लिए दहकते सवाल

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नीलम कुलश्रेष्ठ आदरणीय सुधा अरोड़ा जी की पुस्तक मंगाने से पहले उसकी समीक्षा लिखने के अपने निर्णय से पहले मैंने सोचा भी नहीं था कि मैं एक जटिल चुनौती को आमंत्रित कर रहीं हूँ। इस पुस्तक में स्त्रियों की एक एक समस्या, उनके बौद्धिक विश्लेषण, बरछी की नोंक जैसे दिल में उतर जाते शब्दों से लहूलुहान होकर मैं समझ पाती हूँ कि किस तरह 'कथादेश 'के स्तम्भ 'औरत की दुनियाँ 'में एक एक तराशे -संजोये सुधाजी के शब्द पहले भी अपने नियमित स्तम्भ लेखन के कारण धारदार हैं। बरसों पूर्व 'जनसत्ता 'के' वामा 'स्तम्भ की ऐसी लेखिका का स्तम्भ पुरुष