उजाले की ओर ---संस्मरण

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स्नेही साथियों  नमस्कार      कैसी-कैसी राहों पर होकर गुजरता है जीवन ! जब हम क्भू सोचते हैं कि अरे ! ऐसा हुआ ? तब कभी विश्वास होता भी है तब भी  कभी हम विचलित हो जाते हैं |  घटना चाहे खुद के साथ हो अथवा अपने किसी परिचित के साथ ,सब पर ही उसका प्रभाव पड़ता है | यह बड़ा स्वाभाविक है|     दोस्तों !प्रश्न यह है कि क्या विचलित होने से कुछ होगता है ? क्या हम पिछले दिनों में  जाकर फिर से कुछ कर सकते हैं ?  क्या हम पैनिक होकर कुछ सकारात्मक हो सकते हैं ?  नहीं