भारत मां का भगत

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गर्व से झूम जाती धरती सुन जिसकी गाथा ,मां भारती का लाडला पुत्र था ।आज़ादी को जिसमें बांधा ,वो खुद ही तो वह सूत्र था ।आज़ादी ही जिसकी महबूबा देश ही जिसका जगत ऐसा था वो भारत मां का भगत।बचपन में जब बालकों का खेल गिल्ली डंडा होता था ,तब वो इंकलाबी मिट्टी में बंदूकें बोता था।कहता, इतनी बंदूकें होंगी कोई गिन न पाएगा ,भागेगा हर अंग्रेज़ यहां से लौट स्वदेशी राज आएगा आज़ादी ही जिसकी महबूबा, देश ही जिसका जगत,ऐसा था वो भारत मां का भगत।पढ़ाई में भी अव्वल था तो खेलों में भी पट्ठा, कॉलेज की लड़कियां जान