टॉम काका की कुटिया - 43

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43 - कसौटी चलते-चलते हजारों मील की मंजिल तय हो जाती है और देखते-देखते अमावस्या की घोर निशा बीतकर प्रभात का सूर्य निकल आता है। काल का अबाध-अनंत प्रवाह पाप-पंक में डूबे दुराचारियों को धीरे-धीरे उस घोर अमा-निशा की ओर धकेल रहा है, परंतु साधुओं और महात्माओं को विपत्ति-वेदनाओं से हटाकर धीरे-धीरे सूर्य की शत-शत किरणों से प्रदीप्त दिवस की ओर ले जा रहा है।  पार्थिव पद और प्रभुत्व से शून्य टॉम के जीवन में कितने ही उलटफेर हुए। पहले वह स्त्री-पुरुषों सहित सुख से सानंद जीवन बिताता था, अकस्मात् दिन फिरे, और सुख की घड़ियों की जगह दु:ख की