टॉम काका की कुटिया - 37

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37 - कासी की करुण कहानी रात के दो पहर बीत चुके होंगे। चारों ओर घनघोर अँधियारी छाई हुई है। सड़ी-गली कपास और इधर-उधर फैली टूटी-फूटी चीजों से भरी हुई एक तंग कोठरी में टॉम अचेत पड़ा है। दिन भर अन्न-पानी नसीब नहीं हुआ। इससे उसके प्राण कंठ में आ लगे हैं। इस पर कोठरी में मच्छरों की भरमार। जरा आँखें बंद करने तक का आराम नहीं है।  टॉम जमीन पर पड़ा पुकार रहा है - "हे भगवान! दीनबंधु! एक बार दीन की ओर आँख उठा कर देखो! पाप और अत्याचार पर विजय पाने की शक्ति दो!"  तभी उसे अपनी