ममता की परीक्षा - 47

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रात भर चलनेवाली रस्मों के समापन के साथ ही अब चहल पहल कुछ कम हो गई थी। रात भर खुद जलकर रोशनी लुटाने वाले दीये भी अब थक चुके थे और अपनी अंतिम साँसें ले रहे थे। अँधेरे से मुकाबला करते हुए उनका दम निकलने का समय आ गया था लेकिन दम निकलते निकलते भी अंततः उसने अँधेरे को दूर भगाकर ही छोड़ा। पूरब में पौ फट चुकी थी और किरण रश्मियाँ पूरब दिशा को रक्तिम आवरण पहना चुकी थीं। पेड़ों पर चिड़ियों ने चहचहाना शुरू कर दिया। मंडप में बैठा हुआ गोपाल विवाह की अनेक रस्मों से अब उकता