17 - नई मालकिन मिस अफिलिया कर्त्तव्य-परायण थी। हम उसे कर्त्तव्य-मत्त नहीं समझते। कर्त्तव्य-पालन में वह कभी पीछे नहीं हटती, दुर्गम पर्वत उसके कर्त्तव्य-मार्ग में कभी बाधा नहीं डाल सकता। अगाध समुद्र या प्रचंड अग्नि कर्त्तव्य-पालन से विमुख नहीं कर सकती। हृदय की अनिवार्य निर्बलता के साथ वह सदा घोर संग्राम किया करती थी। यदि वह उस विकट संग्राम में कभी हार जाती तो अपनी निर्बल प्रकृति का ध्यान करके बहुत खिन्न होती थी। अत: इन कारणों से उसका हार्दिक धर्म-विश्वास उसे प्रसन्न बनाकर उल्टा कभी-कभी उसके अंत:करण को विषाद के अंधकार से पूर्ण कर देता था। पर बड़ा आश्चर्य