टॉम काका की कुटिया - 1

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हैरियट वीचर स्टो अनुवाद - हनुमान-प्रसाद-पोद्दार   1 - गुलामों की दुर्दशा माघ का महीना है। दिन ढल चुका है। केंटाकी प्रदेश के किसी नगर के एक मकान में भोजन के उपरांत दो भलेमानस पास-पास बैठे हुए किसी वाद-विवाद में लीन हो रहे थे।  कहने को दोनों ही भलेमानस कहे गए हैं, पर थोड़ा ध्यान से देखने पर साफ मालूम हो जाएगा कि इनमें से एक की गणना सचमुच भले आदमियों में नहीं की जा सकती। यह आदमी देखने में नाटा और मोटा है। इसका शारीरिक गठन बहुत ही मामूली है। कपड़े-लत्तों से अलबत्ता खूब बना-ठना है। उसके और रंग-ढंग