आँख की किरकिरी - 33

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(33) बिहारी को देख कर आशा को थोड़ा भरोसा हुआ। बोली - तुम्हारे जाने के बाद से माँ और भी अकुला उठी हैं, भाई साहब। पहले दिन जब तुम न दिखाई पड़े तब उन्होंने पूछा - बिहारी कहाँ गया? मैंने कहा - वे एक जरूरी काम से बाहर गए हैं। बृहस्पति तक लौट आएँगे। उसके बाद से वे रह-रह कर चौंक-चौंक पड़ती हैं। मुँह से कुछ नहीं कहतीं लेकिन अंदर-ही-अंदर मानो किसी की राह देख रही हैं। कल तुम्हारा तार मिला। मैंने उन्हें बताया, तुम आ रहे हो। उन्होंने आज तुम्हारे लिए खास तौर से खाने का इंतजाम करवाने को