(22) ध्यान में यही आया और अटल विश्वास बन गया। अधीर हो कर वह उसी दम माँ के कमरे में गया। रोशनी वहाँ भी न थी, लेकिन राजलक्ष्मी बिस्तर पर लेटी थीं - यह अँधेरे में भी दिखा। महेंद्र ने रंजिश में कहा - माँ, तुम लोगों ने विनोदिनी से क्या कहा। राजलक्ष्मी बोलीं- कुछ नहीं। महेंद्र - तो वह कहाँ गई? राजलक्ष्मी- मैं क्या जानूँ? महेंद्र ने अविश्वास के स्वर में कहा - तुम नहीं जानतीं? खैर उसे तो मैं जहाँ भी होगी, ढूँढ़ ही निकालूँगा। महेंद्र चल पड़ा। राजलक्ष्मी झट-पट उठ खड़ी हुईं और उसके पीछे-पीछे चलती हुई