आँख की किरकिरी - 20

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(20) मुझसे तुम क्या चाहते हो? प्यार! यह भिखमंगी क्यों आखिर? जन्म से तुम प्यार-ही-प्यार पाते आ रहे हो, फिर भी तुम्हारे लोभ का कोई हिसाब नहीं!  मेरे प्रेम करने और प्रेम पाने की संसार में कोई जगह नहीं - इसीलिए मैं खेल में प्यार के खेद को मिटाया करती हूँ। जब तुम्हें फुर्सत थी, तुमने भी उस झूठे खेल में हाथ बँटाया था। लेकिन खेल की छुट्टी क्या खत्म नहीं होती? अब गर्द-गुबार झाड़-पोंछ कर वापस जाओ। मेरा तो कोई घर नहीं, मैं अकेली ही खेला करूँगी - तुम्हें नहीं बुलाऊँगी।  तुमने लिखा है, तुम मुझे प्यार करते हो।