रवींद्रनाथ टैगोर (1) विनोद की माँ हरिमती महेंद्र की माँ राजलक्ष्मी के पास जा कर धरना देने लगी। दोनों एक ही गाँव की थीं, छुटपन में साथ खेली थीं। राजलक्ष्मी महेंद्र के पीछे पड़ गईं - बेटा महेंद्र, इस गरीब की बिटिया का उद्धार करना पड़ेगा। सुना है, लड़की बड़ी सुंदर है, फिर पढ़ी-लिखी भी है। उसकी रुचियाँ भी तुम लोगों जैसी हैं। महेंद्र बोला - आजकल के तो सभी लड़के मुझ जैसे ही होते हैं। राजलक्ष्मी- तुझसे शादी की बात करना ही मुश्किल है। महेंद्र - माँ, इसे छोड़ कर दुनिया में क्या और कोई बात नहीं है? महेंद्र