अग्निजा - 8

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प्रकरण 8 काल का पहिया तो आगे ही आगे बढ़ता रहा, लेकिन यशोदा को सुख-शांति, सुरक्षा इनमें से कुछ भी हासिल नहीं हुआ। मन का संतोष भी नहीं। वह हमेशा डर के साये में ही जीती रही। अपने बारे में और केतकी के लिए भी उसे असुरक्षा ही महसूस होती रही। रणछोड़ दास के मन में उसके और बेटी केतकी के प्रति जरा भी स्नेह और ममता नहीं है, यह उसे बड़ी जल्द ही मालूम हो चुका था। वह केवल उसकी रात के खेल का साधन है, उसकी जब इच्छा होती, उसे तैयार रहना ही पड़ता था। अपनी इच्छा-अनिच्छा, तबीयत