सोचा न था

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ससुराल में श्री का आज चौथा दिन था। सभी नई दुल्हन को उसके दुल्हे के साथ आशिर्वाद दिलाने मंदिर जाने की तैयारी में जुटे थे। शादी के बाद तीन दिनों तक श्री को ऐसा लगा, मानो वो कोई शहजादी हो। क्योंकि, सभी उसकी हर जरूरतों का ख्याल रख रहे थे और उसे कोई काम भी करना नहीं पड़ रहा था। हालांकि, कभी कभी यूं बैठे रहकर श्री को बहुत बुरा फिल होता जब उसकी सास ननद पूछ पूछ कर थाली परोसकर सामने रख, खाने की ज़िद करतीं। "भाभी, जल्दी उठिए! मंदिर जाना है।" रात करीब ढाई बजे श्री को उसकी