कुमुदिनी कुछ भी नहीं कह पा रही थी। उसके मन में इस समय दुःख और क्रोध का संगम हो रहा था। दुःख तिलक और रागिनी के लिए और क्रोध अपने पिता वीर प्रताप के लिए। उसकी आँखों से कुछ आँसू क्रोध के टपक रहे थे, कुछ दुःख के और कुछ प्यार के। रागिनी कुछ भी समझ नहीं पा रही थी लेकिन तिलक ने ऐसा किसी बड़ी वज़ह के कारण ही किया होगा, वह जानती थी। कुमुदिनी बिना कुछ कहे कमरे से बाहर निकल गई। उसके पीछे-पीछे तिलक भी बाहर आ गया और उसने कहा, "कुमुद रोओ मत, चलो मैं तुम्हें