19-फिल्में बनाम रंगमंच एम. के. रैना कहते हैं- ‘रंगमंच से फिल्मों में अपनी इच्छा से कोई नहीं आता। ओम श्विपुरी भी भीगी पलकों से फिल्मों में आये थे और कारन्त से आज भी नाटकों का मोह नहीं छूटा। पर जहां पैसा नहीं हो, सुविधाएं नहीं हों, वहां आदमी कब तक रंगकर्म में जुटा रह सकता है।’ फिल्म संसार और रंगमंचीय दुनिया में आज भी यही कशमकश जारी है। एक तरफ कला, आत्मसन्तुप्टि और ज्ञान है तो दूसरी ओर पैसा, ग्लैमर, सुविधाएं और स्टार बनने के अवसर हैं। आज फिल्मी दुनिया में सर्वाधिक चर्चित वे ही नाम है जो कल तक