मास्टर रामकिशुन की नाराजगी के अहसास ने ही गोपाल के हाथ पाँव फुला दिए थे। कुछ और न सूझा तो सीधे उनके पैरों में ही गिर पड़ा, " बाबूजी, मुझे माफ़ कर दीजिए। मैं यहाँ पहुँचने के साथ ही आपको सब सच सच बता देना चाहता था। सब कुछ सोच और समझ भी लिया था मैंने तो, बल्कि साधना से यह बात बताया भी था लेकिन पता नहीं क्यों, आपके सामने आते ही मेरी हिम्मत जवाब दे गई। तब उस समय मुझे दिल से महसूस हुआ कि सचमुच कभी कभी सच कहना कितनी बहादुरी का काम होता है, और जब