लीला - (भाग 29)

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दिमाग़ चकरी की भाँति घूम रहा था। ज़िंदगी में इतनी हलचल क्यों है? एक भी दिन शांति से नहीं ग़ुज़रता...। पहले की तरह फिर यकायक जा खड़ी हो तो वे भी क्या सोचेंगे उसके बारे में! कह भी चुके हैं, ‘राजनीति तो गंदी है, शौक के लिये थोड़ी-बहुत समाज सेवा अलग बात है!’ तब वह सोचने लगी कि यह केस राजनीति का है या समाज सेवा का? माना कि राजनीतिक षड्यंत्र का शिकार आज सवर्ण समाज बना है, पर सदियों से तो दलित वर्ग ही सामाजिक अन्याय, शोषण, उत्पीड़न और उपेक्षा का शिकार रहा आया है! इस ख़्याल ने उसे