उसकी औरत शर्बत बना लाई थी। लीला से ना करते न बना। शाम घिर रही थी। थोड़ी देर में वह उठकर नेहनिया थोक में अपने घर चली आई। भौजाई का चेहरा उसे देखते ही खिल गया। उसने खूब दाब-दाब के पाँव छुए और दोनों हाथों की मिट्ठी लेकर अपने कलेजे से लगा ली। पूछा, ‘‘दौड़े पे आईं...?’’ ‘‘दौड़ा-का...!’’ उसने कहना चाहा फिर कुछ सोच कर रह गई। ‘‘और सुनाओ, का चल रओ हेगो! वो केस निबटि गओ?’’ ‘‘वे-ई निबटि गए, केस-का!’’ उसने संक्षेप में बता दिया। तब देर बाद भौजी उसे आराम की सलाह देकर ख़ुद गगरा-तम्हाड़ी उठा पानी भरने