लीला - (भाग 26)

  • 3k
  • 1.1k

उसने कहा, ‘‘डिनर का काल हो चुका है, चलो, ले लें! लौटकर आपके लिये रूम खुलवा दूँगा।’’ उसने सहर्ष हाँ में गर्दन हिला दी। सो, रूम लाक करके वे खरामा-खरामा टेरेस की तरफ़ जा रहे थे...। उसे आज पहली बार जीवन में दिव्यता का आभास हो रहा था। पर वह अपनी भावना किसी भी माध्यम से उस तक पहुँचा नहीं सकती थी। उसके सामने तो बोलने में भी गला भर आता था। इतनी कृतज्ञ तो वह शायद, ईश्वर के प्रति भी नहीं हो सकेगी, जिसने बनाया! क्या सचमुच दलितों को भी उसी ने बनाया? टेरेस पर आकर वह अचंभित थी।