सुबह पाँड़ेजी उधर से निकले, अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए बोले, ‘‘भई, कुछ भी कहो, तुम्हारा ये रोल तो हमें भी बेहद पसंद आया!’’ लीला ने आँखों से उन्हें धन्यवाद दिया और विनम्रता की मूर्ति बनी खड़ी रही। फिर कुछ देर में वे बाहर से ही लौट गए तो नंगे मास्टर क्वार्टर खुला देखकर भीतर घुस आए। लीला ने बड़ी प्रफुल्लता से उनका हार्दिक स्वागत करते हुए प्रकाश से कहा, ‘‘जरा चाय बना लो!’’ इस पर उन्होंने तुरंत नकार में हाथ हिला दिया, ‘‘न... सत्ताईस साल हो गए नेम लिये! जूते भी तभी छोड़ दिये थे।’’ ‘‘और क्या-क्या छोड़ेंगे!’’