लीला - (भाग 16)

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तब वे अपना दिमाग़ ख़राब किये आधीरात तक वहीं बैठे रहे। टट्टी-पेशाब, भूख-प्यास सब मर गई थी। अच्छा हनीमून मनाने गए! क्वाटर पे गुण्डों का कब्ज़ा और हो गया...। ‘तो-क्या, कहीं जाएँगे-आएँगे नहीं?’ ...ख़ून खौल रहा था। पर कोई युक्ति नहीं सूझ रही थी। अगर नीचे से कोई आवाज़ न आती तो रात वहीं ग़ुज़ार देते। पर नीचे से आवाज़ आई तो उन्होंने मुँड़ेर से झाँक कर देखा...रज्जू भय्या ख़ुद बुला रहे थे! ‘‘काहे आएँ!’’ अजान सिंह ने उखड़े स्वर में पूछा। ‘‘दरवज्जा बंद करने...’’ आवाज़ रूखी हो गई, ‘‘तुमें भारी दिक्कत है तो, कल से कहीं और बैठ-उठ लेंगे