365 डेज दिस डे - फ़िल्म समीक्षा

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क्या जरूरत थी डायरेक्टर को ये कारनामा दोबारा करने के लिए, जब उसने दो साल पहले इन्हीं दिनों में ये कारनामा अच्छे से कर दिया था। आख़िर उसकी हिम्मत कैसे हुई कैमरे को ऑन करकर ये फाहियाद हरकत करने की अरे भाई तुझे पोर्न देखनी थी। देखता अकेले में, ये सबको दिखाने की क्या जरूरत थी। लेकिन वो ही कि नरक की आग में, मैं ही अकेला क्यों जलूँ। सबको साथ लेकर कुदूँगा।लेखक के दिमाग मे कहानी के नाम पर केवल एक चीज़ थी की सेक्स कराना हैं।, पटकथा लिखने वाले के दिमाग मे ये था कौन सी लोकेशन पर