वे शार्टकट से निकल रहे थे, इसलिए आमों की बग़िया रास्ते में पड़ी। जेठ मास में सूरज आँख खोलते ही अंगार गिरा उठता है। पसीने से लथपथ अजान ने कहा, ‘‘दो घड़ी विलमा कर फिर चलते हैं। पानी-वानी पी लें!’’ मनोज उसके पीछे ही था, मुड़ लिया बग़िया की तरफ़। वहाँ वे तख़्त पर आकर बैठ गए और बाक़ायदा सुस्ताने लगे...। ‘‘बड़ी प्यारी जगह है!’’ थोड़ी देर बाद मनोज ने अपना ख़याल ज़ाहिर किया। ‘‘जगह क्या, स्वर्ग कहो!’’ अजान बोला। आगे मन ही मन कहा उसने, गोपी-बल्ले न आ जाते तो उस दिन यहीं पे सेज़ सज गई होती तुमाई