विचार करते-करते उसके माथे पर बल पड़ गए। होंठ बुदबुदाने लगे कि, ‘वह एक सहृदय प्राणी है, उसे इतना रिजिड नहीं होना चाहिए। लीला के निश्छल प्रेम का यह कैसा प्रतिदान...?’ उसे ख़ुद पर शरम महसूस होने लगी और मुछमुण्डे से अपनी तुलना कर वह थोड़ी हीन भावना का भी शिकार हुआ कि भले वह गाँव में रहता है, देहाती वेशभूषा में, पर इस रहन-सहन में भी तो स्मार्टनैस हो सकती है! यह क्या कि वह उजड्डों की तरह बीड़ी सुलगाता और पीता है, सरेआम! क्या वह इसी वेष में ठसक के साथ नहीं रह सकता, दूसरे-तीसरे दिन दाढ़ी बनाकर