{ एक माँ ने क्यों और किस संकल्प के साथ उसका हाथ थामा ? दिशा देती एक कहानी .....सोचने को मजबूर करती एक कहानी .... } " साले तेरी इतनी हिम्मत " मेरा हाथ उसकी शर्ट के कॉलर पर कस चुका था। मैंने उसे खींचकर बर्थ से नीचे घसीट लिया। जो गालियाँ कभी मुँह बंद करके नहीं दी होंगी, वह सारी गालियाँ ज़ुबान से फिसलती चली गईं। " हरामजादे, इस चलती ट्रेन से नीचे फेंक दूंगी। समझता क्या है अपने आप को ? " कहते हुए दो चार हाथ भी जड़ दिया उसके मुँह पर। मेरा वह चंडी रूप, आज