मधुप दंश – आस्था रावतसुबह के साढ़े छह होने से पहले ही मेरी आंख अब खुल जाती थी।पर सुबह की गहरी नींद को छोड़ कर सैर के लिए जानामेरे लिए हमेशा से चुनौती पूर्ण रहा है।पर आजकल इस चुनौती से जूझती हुई में जल्दी उठने ही लगी ।क्या करे डर के आगे ही जीत है।अब क्यामें तैयार होकर निकल जाती नीचे मॉर्निंग वॉक के लिए।पार्क में सुबह से ही काफी लोग होते और अगर छुट्टी का दिन हो तब तो बाप रे बच्चे सुबह से ही झूलो पर कब्ज़ा जमाया झूलते रहते।मुझे कभी काफी गुस्सा आताइन बच्चों को क्या नींद