संवाद खुद का खुद से

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लिखता हुं मैलिखता नहीं वाह के लिए ।लिखता नहीं गुनाह के लिए।हूक उठती है दिल में ऐसी ,लिखता हुँ मै आह के लिए ।।लिखता नहीं सलाह के लिए ।लिखता नहीं पनाह के लिए ।इश्क की भूख है कुछ ऐसी ,लिखता हुँ उस चाह के लिए ।।लिखता नहीं शाह के लिए ।लिखता नहीं राह के लिए ।पीड़ा ही देखी है कुछ ऐसी ,लिखता हुँ उस कराह के लिए ।।लिखता नहीं जहाँ के लिए ।लिखता नहीं तन्हा के लिए ।अनुभव हुए है कुछ ऐसे ,लिखता हुँ बस बयाँ के लिए ।।लिखता नहीं यहाँ के लिए ।लिखता नहीं वहाँ के लिए ।जमाना अजब