अंतर्द्वंद्व

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अक्सर एकांत पलों में जब मैं अपने लक्ष्य विहीन विगत जीवन का विश्लेषण करने लगती हूँ तो मन को एक अन्तर्द्वन्द से घिरा हुआ पाती हूँ।वैसे अपनी स्थिति के लिए जिम्मेदार तो व्यक्ति स्वयं होता है या परिस्थितियां कुछ इस कदर बांध देती हैं कि हम सही-गलत का निर्णय ही नहीं कर पाते।शायद हम कभी समझ ही नहीं पाते कि हम चाहते क्या हैं?औऱ थक-हारकर समय की नदी में अपनी जीवननौका बिना पतवार के लहरों के भरोसे छोड़ देते हैं। दो बहन एवं एक भाई में मैं सबसे बड़ी थी।14-15 की होते-होते लड़कियाँ अक्सर काफ़ी समझदार हो जाती हैं, विशेषतः