उजाले की ओर --संस्मरण

  • 3.8k
  • 1
  • 1.5k

स्नेही मित्रों नमस्कार 'मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया ' बड़ा खूबसूरत गीत है , साथ निभाना तो पड़ेगा ही | जाएँगे कहाँ ? सुबह की निकलती लालिमा से लेकर शाम की डूबती किरणों तक ,ज़िंदगी का साथ निबाहना ही होता है | कितनी-कितनी चिंताएँ ,कठिनाइयाँ ,परेशानियाँ आती हैं लेकिन चल,चलाचल --- बेशकीमती लम्हों का खजाना है ये ज़िंदगी ,आना और जाना है ये ज़िंदगी | सब जानते हैं ,मैं कुछ खास तो बता नहीं रही हूँ |लेकिन बात करने का मन होता है ऐसी बातों पर जो हमें एक अनुभव देकर जाती हैं | ज़िंदगी की सदा एक