ठौर- दिव्या शुक्ला

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पिछले लगभग तीन- सवा तीन वर्षों में 300 किताबों के पठन पाठन के दौरान मेरा सरल अथवा कठिन..याने के हर तरह के लेखन से परिचय हुआ। जहाँ एक तरफ़ धाराप्रवाह लेखन से जुड़ी कोई किताब मुझे इतनी ज्यादा रुचिकर लगी कि उसे मैं एक दिन में ही आसानी से पढ़ गया तो वहीं दूसरी तरफ़ किसी किसी किताब को पूरा करने में मुझे दस से बारह दिन तक भी लगे। ऐसा कई बार किताब की दुरह भाषा भाषा की वजह से हुआ तो कई बार विषय के कठिन एवं कॉम्प्लिकेटिड होने की वजह से। इस बीच मनमोहक शैली में लिखी