मेरी एक परिचिता राधा जी के पिताजी थे सरपँच भगवान जी।आज से लगभग 55-60 वर्ष पूर्व की कथा है यह,जो मैंने राधा जी की जुबानी सुनी थी,प्रस्तुत कर रही हूँ।वैसे,कहानी भले ही इतने पहले की है लेकिन आज भी ऐसी कथाएँ सुनने को मिलती रहती हैं, बस पात्रों की स्थिति बदल जाती है। सात पुरवा का सम्मिलित गाँव था।गाँवों में जाति के हिसाब से पुरवा अर्थात मोहल्ले का विभाजन एवं नामकरण होता था-यथा,बामन(ब्राह्मण)पुरवा,ठाकुर पुरवा, भरौटी ……. इत्यादि।उस इलाके में भगवान जी का जबरदस्त दबदबा था,जमींदार खानदान से सम्बंधित थे।स्वतंत्रता के पश्चात जमींदारी तो समाप्त हो गई,लेकिन जमीन-जायदाद भरपूर था और