अनमेल विवाह और प्रेमचंदस्त्री विमर्श के इस दौर में स्त्री की इच्छा ,भावना,कल्पना और कार्यदक्षता के साथ ही उसकी यौनिकता[व्यापक अर्थ में जीवनेच्छा]पर भी विचार -विमर्श किया जाता है|स्त्री भी ,मनुष्य है मात्र लिंग नहीं फिर भी पितृसत्ता एक तरफ तो पुरूष की काम-भावना को गौरवान्वित करता है दूसरी तरफ स्त्री की काम-भावना को विकृति मानकर तिरस्कृत करता है | शूपर्णखा का राम-लक्ष्मण के प्रति काम-भाव और उसकी परिणति से सब परिचित हैं |पूंजीवादी औद्योगिक समाज में भी पुरूष का ही बर्चस्व है ।स्त्री को तो वहाँ भी पण्य- वस्तु ही माना जाता है,जिसे खरीदा,भोगा तथा फेंका जा सकता है