भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 13

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13 चौथा दिन आज का दिन मुझे आराम करना था। अपने हॉस्टल के बाहर बैठकर किताब पढ़ने की इच्छा थी। उस हॉस्टल में कई किताबें रखीं थीं। जिसमें आने वाले अपनी पसंद की किताब पढ़ते हैं और अपनी कोई पढ़ी हुई किताब वहां छोड़ जाते हैं। किताबों के एक्सचेंज का यह एक खूबसूरत तरीका लगा। आज जर्मनी से आए हुए कुछ लोग भी धूप में बैठे थे। जिनमें एक युवती ड्राइंग कर रही थी और उसके साथी पढ़ रहा था। उस अंब्रेला के नीचे लगी कुर्सियों का भरपूर इस्तेमाल होता था। कोई अपनी कुर्सी उठाकर, एक कोने में बैठकर संगीत