कालिदासम् नमामि

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शब्दों के दैवी संगीत और लय मैं संजोया ,वह मानव जीवन जो मानो विधाता ने शंख से खोद कर,मुक्ता से सींच कर, मृणाल तंतु से संवार कर, चंद्रमा के कुचूर्क से प्रक्षालित कर, सुधाकर चूर्ण से धोकर, रजत -रज से पोछकर, कुरज कुंद और सिंध वार पुष्पों की धवल कांति से सजा कर जिसका निर्माण किया वह कला और संस्कृति के रस में लीन होते हुए भी, रस सिद्ध कवि कालिदास की रसमयी वाणी के रस सागर में पूर्णतः सरावोर है।कालिदास के काव्य में, साहित्य और कला का, संस्कति और सदाचार का एकत्र संयोग देखने को मिलता है। देश में