स्थान- परिवर्तन

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सुबह की चाय का प्याला थमाते हुए जयन्ती ने बड़ी सहजता से प्रतीक से कहा-‘प्रतीक, मैं अब तुम्हारी माँ के साथ नहीं रह सकती। प्रतीक अखबार पढ़ रहा था, पढ़ता रहा। बिना नज़र उठाए उसने भी उतनी ही सहजता से पूछा- ‘माँ के साथ न रह पाने का मतलब!मतलब तो सीधा है कि मैं तुम्हारी माँ के साथ नहीं रह सकती।’ अपनी शादी के कुछ दिन बाद ही प्रतीक ने माँ का मकान बेच डाला था। कई वर्ष तक वह मकान माँ और बाबूजी की सिर्फ कल्पनाओं और सपनों में घूमता रहा, फिर उन दोनों की कड़ी मेहनत और बचत