उड़ान - 16

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"काव्या अब घर चले"रुद्र ने उसकी आँखों में आँखें डाल कर पूछा। "थोड़ी देर और रुकते है ना प्लीज़""अच्छा बाबा पर उस पेड़ के नीचे चलते है अब बारिश में भीगना बहुत हुआ""ठीक है चलो" दोनों पेड़ के नीचे जा बैठे। बारिश लगभग रुक सी गयी थी। हल्की सी बुँदे गिर रही थी। रुद्र ने काव्या का हाथ थाम कर बोला"काव्या... समझ नहीं आता किस तरह से तुम्हें थैंक्स बोलू। मैने कितना गलत किया तुम्हारे साथ। उसके लिए माफी भी कैसे माँगू और तुम जाने कितनी बार मेरी वजह से जलील हुई। तुम्हें पता है काव्या अगर तुम ना होती तो मैं कभी