स्त्री भावनाओं को मूर्त करते अनूठे प्रतीक

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[ गुजरात की व कुछ अन्य कवयित्रियों का काव्य संग्रह ] डॉ. रेनू यादव घर घर होता है फिर भी स्त्रियों के लिए घर एक सपना क्यों होता है ? क्यों उसे अपने ही घर की देहरी लाँघने की जरूरत पड़ती है ? क्यों वह कोख को लेकर चिंताग्रस्त रहती है ? तथा क्यों उसे अपने सपने भी बेड़ियों में जकड़े नज़र आते हैं ? इन्हीं सवालों के जबाव ढूँढने घर की देहरी लाँघकर निकली है स्त्री क़लम । नीलम कुलश्रेष्ठ जी के संपादन में निकलने वाली पुस्तक ‘घर की देहरी लाँघती स्त्री क़लम’ काव्य-संग्रह में 70 कविताएँ संकलित हैं